Friday, January 8, 2016

क्षमाशील सद्गुरु


     दादू पंथ के संस्थापक स्वामी दादूदयाल जी अपने भ्रमण के दौरान एक नगर के बाहर जंगल में बनी झोंपड़ी में रहने लगे। वहां वे भक्ति रस में डूबे गीत गाते रहते, साथ ही उनके पास आने वाले श्रद्धालुओं को तत्वज्ञान का उपदेश भी देते। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी। यह प्रसिद्धि उस नगर के कोतवाल तक भी पहुँची, जो कि गुस्सैल स्वभाव का होने के साथ ही धार्मिक प्रवृत्ति का भी था। वह बहुत दिनों से सच्चे गुरु की तलाश में था। महात्मा दादू जी के बारे में सुनकर उसके मन में उनसे भेंट करने का विचार आया और वह इसके लिए शहर से अपने घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा। वह जंगल में बहुत दूर तक निकल गया, लेकिन दादूदयाल जी की झोंपड़ी दिखाई नहीं दी। वह सोचने लगा कि शायद मैं रास्ता भटक गया। इतने में उसकी नज़र एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी, जो काँटेदार झाड़ियों को काटकर रास्ते की सफाई कर रहा था। कोतवाल उस व्यक्ति के पास पहुंचा और पुलिसिया अंदाज़ में पूछा अबे ओए! महात्मा दादू कहाँ रहते हैं? जल्दी से बता कि उनकी झोंपड़ी किस तरफ है? वह व्यक्ति अपने कार्य में तल्लीन था और उसने कोतवाल के प्रश्न का जवाब नहीं दिया। उस व्यक्ति का यह व्यवहार कोतवाल को अपना अपमान लगा और वह कड़क आवाज़ में गाली देते हुए बोला क्या मैं तेरे बाप का नौकर हूँ? जवाब क्यों नहीं देता? कोतवाल की इस बात का भी उस व्यक्ति पर कोई असर नहीं हुआ और वह केवल धीरे से मुस्करा दिया।
     कोतवाल को लगा कि यह व्यक्ति मुझसे ठिठोली कर रहा है। वह गुस्सैल तो था ही, उसने अपने हाथ मे लगे चाबुक से उस व्यक्ति पर प्रहार करना शुरु कर दिया। लेकिन वह व्यक्ति चाबुक लगने के बाद भी मुस्कराता रहा। इस पर कोतवाल ने सोचा-शायद यह व्यक्ति पागल है और वह उसे धक्का देकर आगे बढ़ गया। आगे जाकर उसे एक व्यक्ति और मिला, जिससे उसने दादूदयाल जी के बारे में पूछा। उस व्यक्ति ने बताया कि कोतवाल सा'ब! दादूदयाल जी तो जिस रास्ते से आप आ रहे हैं, उस पर कुछ ही दूर कँटीली झाड़ियों को हटाकर रास्ता साफ कर रहे हैं।
     कोतवाल आश्चर्य में पड़ गया और वह तेज़ी से घोड़ा पलटाकर दादूदयाल जी के पास पहुँचा। कोतवाल ने देखा कि वे अब भी उसी तरह मुस्कराते हुए झाड़ियों को काट रहे थे। धक्के की वजह से लगी चोट पर उन्होने पट्टी बांध रखी थी। कोतवाल घोड़े से उतर कर उनके पैरों में गिर पड़ा और रोते हुए क्षमा माँगने लगा। उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा था। वह बोला मेरी मती मारी गई थी जो मैने आपको ही पीट दिया। मुझे नहीं पता था कि आप ही महात्मा दादू हैं। आप तो रास्ता साफ कर रहे थे। इस पर दादू जी ने मुस्कराते हुए कहा हाँ, इस रास्ते पर कँटीली झाडियाँ बहुत हैं। यहां से गुजरने वाले यात्रियों को कोई कष्ट न हो, इसलिए मैं इन्हें रास्ते से हटा रहा हूँ। जब मैं मनुष्य के मन में समाहित काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार की कँटीली झाड़ियों को हटाने की सलाह देता हूँ तो भौतिक संसार के काँटों को राह में कैसे रहने दूँ? दादू आगे बोले-वैसे तुम अपने कृत्य पर दुःखी मत हो। गलत कुछ नहीं किया तुमने। तुम सच्चे गुरु की तलाश में निकले हो। आज की दुनियां में जब तुम एक मटका भी खरीदने से पहले ठोंक-पीटकर देख लेते हो, तो जीवन की सच्ची राह दिखाने वाले गुरु को ठोंक-पीटकर देख लिया तो इसमें गलत क्या किया?

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