Thursday, January 7, 2016

पीठ पीछे बुराई नहीं प्रशंसा करो।


     यह बात उस समय की है, जब विश्वामित्र व वशिष्ठ के संबंध आपस में अच्छे नहीं थे। ब्राहृर्षि वशिष्ठ बड़े ही क्षमाशील थे। वे विश्वामित्र की हर धृष्टता को क्षमा कर देते थे। इससे तीनों लोकों में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी जिस कारण विश्वामित्र उनसे और अधिक ईष्र्या करने लगे। इस ईष्र्या का प्रमुख कारण यह था कि कठोर तप और उपलब्धियों के बाद भी वशिष्ठ ने उन्हें "ब्राहृर्षि' नहीं माना था। वे तो उन्हें "राजर्षि' कहकर ही संबोधित करते थे। और वशिष्ठ की सहमति के बगैर उन्हें यह सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता था। इस कारण वे उन्हें नीचा दिखाने का कोई न कोई मौका ढूँढते रहते थे। एक बार उनके मन में विचार आया कि यदि मैं वशिष्ठ का वध कर दूँ तो सब मुझे ब्राहृर्षि मान लेंगे, क्योंकि तब राजर्षि कहने वाला कोई रहेगा ही नहीं। ऐसा सोचकर हाथ में कटार लेकर वे रात में छुपते-छुपाते वशिष्ठ के आश्रम पहुँचे। वे वहां उस वृक्ष पर चढ़ गए, जिसके नीचे बनी कुटी में वशिष्ठ जी रात्रि विश्राम करते थे। कुछ समय बाद वशिष्ठ मुनि सपत्नीक वहाँ आए और आसन पर विराजमान हो गए। वह पूर्णिमा की रात थी और आकाश में चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर था।
     विश्वामित्र ऊपर घात लगाए बैठे थे। वे सोच रहे थे कि जैसे ही ये सो जाएँगे, तब एक ही वार में इनकी इहलीला समाप्त कर दूँगा। इतने में ऋषि-पत्नी की आवाज़ सुनकर उनका ध्यान टूटा। वे पूर्णिमा के चंद्रमा को देखकर बोली-आज चाँद का प्रकाश कितना मधुर व शीतल लग रहा है। यह चित्त को बहुत ही शांति प्रदान कर रहा है। वशिष्ठ जी ने चांद की ओर देखा और बोले-देवी, तुम विश्वामित्र को देखो तो इस चांद को भूल जाओगी। यह चाँद तो कलंकित है, लेकिन उनके तप का जो तेज़ है, उसका कोई सानी नहीं। बस, उनमें एक ही कमी है। यदि वे अपने स्वभाव से क्रोध के कलंक को मिटा दें तो वे सूर्य की भाँति चमक उठें उनके बराबर कठिन तपस्या शायद ही किसी ऋषि ने आज तक की हो।
     इस पर अरूंधती बोली-परंतु स्वामी, वे तो हमारे शत्रु हैं। आपको तरह-तरह से परेशान करते हैं। हमेशा आपका अहित ही सोचते हैं। फिर भी आप उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। वशिष्ठ बोले-मैं जानता हूँ देवी, परंतु मैं यह भी जानता हूँ कि वे मुझसे अधिक विद्वान हैं। वे तो महात्मा हैं महात्मा। बस विनम्रता आ जाए, फिर तो मेरा सिर उनके सामने झुका है। वृक्ष पर बैठे विश्वामित्र ने यह सब सुना तो वे पानी-पानी हो गए। वे आए थे वशिष्ठ का वध करने और वे थे कि उनकी प्रशंसा किए जा रहे थे। वे तुरंत पेड़ से नीचे कूद पड़े। कटार को फेंककर वशिष्ठ के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे। वशिष्ठ उन्हें उठाकर बोले-उठो ब्राहृर्षि। विश्वामित्र ने आश्चर्य से कहा- ब्राहृर्षि? आपने मुझे ब्राहृर्षि कहकर पुकारा। परन्तु अभी तक तो आप यह मानते नहीं थे। वशिष्ठ बोले-आश्चर्यचकित  मत होइए विश्वामित्र। तुम्हारे अंदर जो क्रोध का कलंक था, वह अब दूर हो चुका है। तुम अब सही अर्थों में ब्राहृर्षि बन गए हो।
      यही परिणाम होता है पीठ पीछे प्रशंसा करने का। हमें हमेशा दूसरों में गुण ही देखने चाहिए, फिर भले ही वह हमारा कितना ही बड़ा शत्रु क्यों न हो। जैसा कि वशिष्ठ जी ने किया। वे जानते थे कि विश्वामित्र हमेशा उनका अहित सोचते हैं, लेकिन वे हमेशा उनके गुणों को ही देखते थे और उनकी प्रशंसा करते थे। यही एक बुद्धिमान व संस्कारित व्यक्ति का कत्र्तव्य भी है। अतः कह सकते हैं कि पीठ पीछे की प्रशंसा हर तरह से लाभप्रद है और हमें इसकी आदत डाल लेनी चाहिए। इससे आपके मन में नकारात्मक भाव नहीं आते और साथ ही जिस व्यक्ति की आप प्रशंसा कर रहे हैं, जब उसे यह बात पता चलती है तो वह बहुत खुश होता है और हमेशा के लिए आपका बन जाता है। इसलिए मुँह पर की गई प्रशंसा की अपेक्षा पीठ पीछे की प्रशंसा को अधिक प्रभावी बताया गया है, क्योंकि यह आपके संबंधो को लेकर कितने ईमानदार हैं।
     दूसरी ओर पीठ पीछे किसी की बुराई करने से कोई लाभ नहीं मिलता, बल्कि जिसकी आप बुराई कर रहे हैं, उसके साथ आपके मन में भी नकारात्मक भावना आती है और बने-बनाए संबंध बिगड़ जाते हैं। यानी यह एक नई बुराई को जन्म देती है। वो कहते हैं न कि बुराई से बुराई का जन्म होता है। और पीठ पीछे की बुराई तो बहुत ही बुरी बात है, क्योंकि जब आप किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई करते हैं तो यकीनन आप उससे जलते हैं। बेहतर तो यही है कि यदि आपको किसी में कोई कमी नज़र आती है, तो उसे उसके मुँह पर कहें ताकि वह सुधार कर सके। अन्यथा कमी उसमें नहीं, आप में है, क्योंकि आप नहीं चाहते कि वह सुधरे। कॅरियर में हम हमेशा अपने सहकर्मियों को लेकर यही रुख अपनाते हैं। लेकिन अंततः इसका नुकसान हमें ही उठाना पड़ता है, क्योंकि लोगों को हमारी विश्वसनीयता पर शक होने लगता है। वे सोचते हैं कि यदि आज यह उसकी बुराई कर रहा है तो कल हमारी भी करेगा। इस तरह वे धीरे-धीरे आपसे कटने लगते हैं। यदि आप इस स्थिति से बचना चाहते हैं तो लोगों की प्रशंसा करना शुरु कर दें। सामने भी और पीठ पीछे भी।

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