विजय नाम के एक व्यक्ति के तीन दोस्त थे। उनमें से एक बहुत घनिष्ठ था जिससे उसकी रोज ही मुलाकात हो जाती थी। दूसरे दोस्त से उसकी मुलाकात सप्ताह में एकाध बार होती थी या फिर साप्ताहिक अवकाश के दिन वह उससे मिलने के लिए समय निकालता था। तीसरे दोस्त से वह बहुत कम मिल पाता था। कई बार तो दोनों को मिले हुए महीनों बीत जाते थे। इस प्रकार वर्षों से उनकी दोस्ती चली आ रही थी।
एक बार की बात है। विजय एक मुकदमें में उलझ गया। उसने बहुत कोशिश की कि उससे बच जाए, लेकिन ऐसा हो न सका और उसे अदालत से एक निश्चित तिथि पर उपस्थित होने के लिए फरमान मिल गया। पेशी वाले दिन उदास मन से विजय अदालत जाने के लिए तैयार हो गया। अदालत जाने से पहले उसने सोचा कि क्यों न अपने सबसे प्रिय मित्र को साथ ले लिया जए। ऐसा सोचकर वह उसके पास पहुँचा और बोला-""दोस्त! मैं एक मुकदमें में फँस गया हूँ। आज मेरी पेशी है। तू मेरा सबसे प्यारा दोस्त है। मैं चाहता हूँ कि तू भी मेरे साथ चले। इससे मुझे साहस मिलेगा।'' विजय की बात सुनकर वह दोस्त तुरंत बोला- माफ करना यार, मुझे आज एक बहुत ज़रूरी काम है। इसलिए मैं तेरे साथ अदालत नहीं चल पाऊँगा। वैसे तू घबरा मत, मैं दुआ करूँगा कि फैसला तेरे पक्ष में हो।
उसका जवाब सुनकर विजय को बहुत धक्का लगा। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसने जिस दोस्त को सबसे ज्यादा चाहा, वह मुसीबत में उसके साथ खड़े होने की बजाए किसी और काम को ज्यादा महत्व दे रहा है। वह निराश होकर वहाँ से चल दिया। तभी उसे सामने से अपना दूसरा दोस्त आता हुआ दिखाई दिया। उसकी जान में जान आई। नज़दीक आने पर उसने उसे भी अपनी परेशानी बताई और साथ चलने को कहा। इस पर वह बोला-""मित्र! मुझे आज तो तू छोड़ ही दे। काम के संबंध में बहुत दिन से किसी व्यक्ति के पीछे लगा था। उसने अभी मिलने का समय दिया है और मेरा उसके पास पहुँचना ज़रूरी है। एक काम करता हूँ, मैं तुझे अदालत के बाहर छोड़ता हुआ निकल जाता हूँ।'' उसने ऐसा ही किया और वह उसे अदालत के दरवाज़े पर छोड़कर चला गया। विजय मुँह लटकाए अदालत परिसर में प्रवेश कर ही रहा था कि सामने तीसरा दोस्त खड़ा दिखाई दिया। इसके पहले कि वह कुछ बोलता, दोस्त बोला- तुझे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। मुझे सब कुछ पता है। तू चिंता न कर, मैं अदालत में तेरे साथ पूरे समय रहूँगा। और यदि ज़रूरत पड़ी तो तेरे पक्ष में गवाही भी दूँगा। यह सुनकर विजय खुश हो गया और वे दोनों अंदर चले गए।
दोस्तों, आप किस दोस्त को सबसे बेहतर बताएँगे। निश्चित ही तीसरे दोस्त को, जो विजय से यदा-कदा मिलता था, लेकिन जब उसे ज़रूरत पड़ी तो वही उसके काम आया। इस पूरे घटनाक्रम से विजय को पता चल गया कि वास्तव में उसका सच्चा दोस्त कौन-सा है, दोस्त तो वही होता है, जो मुसीबत में काम आए। वह दोस्त ही क्या, जो मुसीबत में साथ छोड़ जाए। कहते भी हैं कि आपात काल परखिए चारी, धीरज धर्म मित्र अरु नारी। तो फिर आप किस दोस्त को जीवन में ज्यादा महत्व देंगे? क्या कहा। तीसरे दोस्त को। एक बार फिर सोच लें। ठीक है। यदि आप अपनी बात पर अडिग हैं तो हम एक राज़ खोलते हैं। हमने अभी यह तो बताया ही नहीं है कि वें तीनों दोस्त वास्तव में थे कौन? पहला देस्त था विजय द्वारा कमाई गई धन-दौलत। दूसरा दोस्त था उसके मित्र-परिजन। और तीसरा दोस्त था उसके सत्कर्म, उसके सद्गुण। और जिस अदालत में हाज़िर होने का उसे फरमान मिला था, वह थी धर्मराज की अदालत, जहाँ कि एक दिन हम सभी को जाना होता है।
विजय ने जीवनभर धन-दौलत को सबसे ज्यादा चाहा। जब उससे काम पड़ा तो सबसे पहले वही उसके पीछे छूटी। उसके बाद उसने अपने मित्र-परिजनों को महत्व दिया। वे भी उसे अदालत के दरवाज़े पर छोड़कर लौट आए और अपने-अपने कामों में लग गए। तीसरा दोस्त यानी उसके सत्कर्म, सद्गुण उसके साथ गए और उन्होने धर्मराज के सामने विजय के पक्ष में गवाही दी। तो यह थी दोस्तों की सच्चाई। आज की कहानी से जाना कि हमारा सच्चा मित्र कौन हो सकता है। यानी कह सकते हैं कि सत्कर्म और सद्गुण ही किसी व्यक्ति की सफलता में सबसे बड़ी भूमिका अदा करते हैं। तो फिर और मित्रों के साथ क्यों न इन्हें भी बनाया जाए अपना प्रिय मित्र।
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