Sunday, January 31, 2016

तैयार हैं न अपने नये अवतार के लिए?


     एक समय पृथ्वी पर हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। चारों ओर हाहाकार मचा था। लोग डर के मारे सब कुछ सहते रहते थे। उसी समय की बात है। एक बार हैहयराज सहरुाबाहु-अर्जुन अपनी सेना के साथ महर्षि जमदाग्नि के आश्रम से गुज़र रहा था। महर्षि ने उसे आतिथ्य के लिए आमंत्रित किया। महर्षि के पास एक कामधेनु गाय थी जिसने पलक झपकते ही सभी अतिथियों के लिए छप्पनभोग की व्यवस्था कर दी। कामधेनु के चमत्कार से राजा के मन में लालच आ गया। वह सोचने लगा कि ऐसी अद्भुत गाय तो मेरे महल में होनी चाहिए। उसने महर्षि से कामधेनु को अपने साथ ले जाने की इच्छा प्रकट की जिसे उन्होने बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। इस पर वह अत्याचारी राजा अपनी ताकत के बल पर कामधेनु को उसके बछड़े सहित बलपूर्वक हड़पकर ले गया।
     जिस समय यह सब घटना घटी, उस समय महर्षि के पुत्र परशुराम जी आश्रम से बाहर गए हुए थे। वापस लौटने पर जब उन्हें इस घटना के बारे में पता चला तो क्रोध से उनकी आँखें लाल हो गर्इं। वे बोले- उस दुष्ट राजा की हिम्मत कैसे हुई यहाँ से कामधेनु ले जाने की? वो क्या समझता है, हम आश्रमवासी उसके अत्याचार को चुपचाप सह लेंगे, मैं इसका विरोध करूँगा और प्रण करता हूँ कि अपनी कामधेनु को वापस लेकर ही लौटूँगा। गुस्से में तमतमाते हुए वे सहरुाबाहु अर्जुन के महल पहुँचे और उसे कामधेनु वापिस करने के लिए ललकारा।
      सहरुाबाहु ने उनकी बात का उत्तर देने के बजाय अपने सैनिकों को परशुराम को मार डालने का आदेश दे दिया। तब परशुराम ने न केवल उन सैनिकों बल्कि बाद में पूरी सेना को नष्ट कर दिया। अंत में सहरुाबाहु स्वयं उनसे युद्ध करने आया, लेकिन परशुराम के युद्ध कौशल का वह ज्यादा देर तक सामना नहीं कर पाया और मारा गया। परशुराम युद्ध में विजयी रहे और कामधेनु व बछड़े को छुड़ाकर खुशी-खुशी आश्रम ले आए। इस प्रकार परशुराम ने एक शक्तिशाली राजा के अत्याचार के सामने घुटने टेकने के बजाय उसका प्रतिकार किया और विजय हासिल की। उन्होने अपने हक की लड़ाई लड़ी। आखिर जो वस्तु आपकी है, उसे कोई कितना ही ताकतवर क्यों न हो, कैसे छीन सकता है? उस पर कैसे अपना अधिकार जमा सकता है? क्या आप विरोध नहीं करेंगे? निश्चित करेंगे। और यदि नहीं करते हैं तो यह आपकी कमज़ोरी है, कायरता है और आपका अपराध भी। क्योंकि यदि हम अन्याय करने वाले को अपराधी मानते हैं तो सहने वाला भी बराबर का अपराधी होता है। इसलिए अन्याय का विरोध करो। आप विरोध नहीं करेंगे तो सामने वाले की तो हिम्मत ही बढ़ती चली जाएगी। यदि इसे रोकना है तो कहीं न कहीं तो पहल करनी ही होगी। ईश्वर ने जितने भी अवतार लिए हैं, वे सब किसी न किसी अत्याचार या अन्याय के विरोध में ही लिए हैं।
     इसलिए हम चाहेंगे कि यदि आप किसी व्यक्ति के अन्याय को सह रहे हैं तो आज हिम्मत कर उसका विरोध करें। विरोध करने से हमारा तात्पर्य यह नहीं कि परशुराम की तरह विरोध करें। क्योंकि वर्तमान में ऐसा करना व्यावहारिक धरातल पर उचित नहीं है। सोचो तो कई तरीके हो सकते हैं। जो आपकी परिस्थिति के अनुसार उपयोगी हो सकते हैं। विरोध करने का सबसे सही तरीका तो यह है कि सामने वाले को समझाएँ। यदि समझाने से काम नहीं चलता है तो कानून का सहारा लें, लेकिन घुट-घुटकर नहीं जिएँ। कुछ ऐसा कर दिखाएँ कि आपके जानने वाले कहें कि आज आपका नया अवतार हुआ है।
     आज से आप अपने अवगुणों का दान करें। अधिक नहीं तो कम से कम एक अवगुण अवश्य दान करें जिससे कि आपको सद्गुणों के रूप में उसका निरंतर फल प्राप्त होता रहे। इससे भी आप अपने आपको बदला हआ महसूस करेंगे यानी आपका नया अवतार होगा। तो तैयार हैं न आप अपने नए अवतार के लिए?

No comments:

Post a Comment