Friday, January 29, 2016

अच्छी टीम है साथ तो सफलता आपके हाथ


     एक बार अकबर भेष बदलकर आगरा की गलियों में घूम रहे थे। एक जगह बहुरूपियों का तमाशा देख रही भीड़ को देखकर वे रूक गए। एक बहुरूपिया बोल रहा था- मेहरबान, कद्रदान। दुनियाँ के सबसे बड़े बहुरूपिए आज आपके बीच में तमाशा दिखा रहे हैं। तमाशे की शुरूआत में मिलिए इस बैल से। तभी वहाँ एक बहुरूपिया बैल का भेष बनाकर आ गया। दूसरा बहुरूपिया उसे घास खिलाने लगा। उसे बैल की तरह घास खाते देख बादशाह सहित सभी लोग वाह-वाह कर उठे।
     तभी अकबर की नज़र एक युवक पर पड़ी, जो वहाँ तटस्थ भाव से खड़ा था। उसे देखकर उन्हें हैरानी हुई कि जब तमाशा देख रहे सभी लोग खुश हैं तो यह क्यों नहीं। इस बीच बैल का तमाशा खत्म हो गया। इतने में उस युवक ने बैल बने बहुरूपिए की पिछली टाँग को निशाना बनाकर एक पत्थर फेंका। पत्थर बैल की टाँग से टकराया। उसने टाँग को झटकारा। इसे देखकर वह युवक जोर-जोर से तालियाँ बजाकर उसके हुनर की तारीफ करने लगा। युवक को ऐसा करते देख अकबर उसके नज़दीक पहुँचकर बोले-"सुनो बरखुरदार! युवक- जी कहिए। अकबर- हम जानना चाहते हैं कि आपने तमाशा खत्म होने के इतनी देर बाद क्योें तालियाँ बजार्इं। युवक- वो इसलिए कि वह बहुरूपिया अपने हुनर का माहिर था। उसने जिसका रूप धरा था, उसके छोटे-छोटे हाव-भाव की भी हूबहू नकल करना वास्तव में तारीफ की बात है। यह वही कर सकता है जो अपने काम को डूबकर करता है। मेरे पत्थर मारने पर उस बहुरूपिये ने पैर वैसे ही झटकारा, जैसे कोई बैल झटकारता। अकबर-तो आपने उसे परखकर ही उसकी तारीफ की। भई, तुम तो बड़े अक्लमंद हो। क्या नाम है तुम्हारा? युवक- बीरबल। अकबर-बहुत अच्छा नाम है। क्या आप हमारे साथ काम करना पसंद करेंगे। युवक- जी, जहाँपनाह। एक शहंशाह के हुक्म को मैं कैसे टाल सकता हूँ। अकबर चौंककर बोले-क्या! लेकिन तुमने हमें पहचाना कैसे? युवक- हुज़ूर, आपने भेष ज़रूर बदला है, लेकिन जबान नहीं बदली। आपके बोलने का शाहीअंदाज़ मुझसे छिप नहीं सका।
     दोस्तो, यह थी अकबर की बीरबल से पहली मुलाकात। इस मुलाकात में उन्होने बीरबल की बुद्धिमत्ता को बातों ही बातों में परख लिया, पहचान लिया और उन्हें अपने दरबार में शामिल कर लिया। अकबर लोगों में छुपी प्रतिभा को पहचानने में माहिर थे और उसकी कद्र भी करते थे। इस कारण अपने-अपने क्षेत्र के हीरे यानी दिग्गज लोग उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे, जिन्हें एक जौहरी की तरह परखकर उन्होने अपने दरबार में शामिल कर लिया था। और इन्हीं दिग्गज़ों की बदौलत अकबर बने भारत के एक सफलतम सम्राट। अकबर जैसा ही पारखी हर उस व्यवसायी, अधिकारी को होना चाहिए जिसके ऊपर संस्था की प्रगति की ज़िम्मेदारी है और जो अपनी संस्था की दिन दुगनी रात चौगुनी प्रगति चाहता है। इसके लिए उसे अपनी टीम का चयन देखभाल कर करना चाहिए, क्योंकि एक अच्छी टीम ही उसके सपने को साकार कर सकती है। इसके लिए ज़रूरी है कि टीम का हर सदस्य अपने काम में अव्वल हो, माहिर हो। जो ज़िम्मेदारी आप जिसे सौंपना चाहते हैं, उसे उसकी पूरी समझ हो, उसमें निभाने का पूरा माद्दा हो। इसलिए कभी भी किसी भी व्यक्ति का चयन करते समय इन बातों का ध्यान रखें। ज़रूरी नहीं है कि ऐसा व्यक्ति इंटरव्यू के माध्यम से ही मिले। यदि आपको तलाश है तो कोई न कोई व्यक्ति आपको अचानक कहीं मिल ही जाएगा, जैसे कि अकबर को बीरबल मिल गए। इस प्रसंग से यह भी सीखा जा सकता है कि किसी भी व्यक्ति से एकदम प्रभावित होकर उसके प्रशंसक न बनें। पहले यह देख लें कि क्या वह वाकई में उतना योग्य है, जितना आप समझ रहे हैं या फिर उसकी योग्यता वहीं तक सीमित है, जिसका वह प्रदर्शन कर रहा था। बाकी तो डब्बा गोल है। बीरबल ने तभी ताली बजाई, जब वे बहुरूपिए की कला का अपने तरीके से आंकलन करके संतुष्ट हो गए। दूसरी ओर, उस बहुरूपिए की तरह जो भी काम करें, डूबकर करें, खो जाएँ उसमें। तभी आप अपने हुनर के उस्ताद कहलाएँगे, तभी आपको सही पारखियों की दाद मिलेगी। इसके लिए आपको अपनी भूमिका के प्रति हर वक्त सतर्क रहना होगा। तभी आप उसे ठीक से निभा पाएँगे और तभी लोग आपकी सफलता पर बजाएँगे तालियाँ।

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