एक बार फ्लेमिंग नामक एक गरीब किसान सुबह-सुबह काम पर जा रहा था, तभी उसे उसके घर के पास ही स्थित दलदल से किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना तो कोई सहायता के लिए पुकार रहा था। अपना सारा सामान फेंककर वह दलदल की ओर दौड़ा। वहाँ जाकर उसने देखा कि एक लड़का कमर तक धँसा हुआ है। वह बाहर आने की कोशिश में दलदल के अंदर धँसता चला जा रहा था।
फ्लेमिंग बिना समय गँवाए उसे बचाने की कोशिशों में जुट गया। बहुत प्रयत्न करने के बाद वह अंततः उस लड़के को मौत के मुँह से निकाल लाने में कामयाब हो गया। वह लड़का उसका शुक्रिया अदा करके वहाँ से चला गया। फ्लेमिंग भी अपने काम पर चल दिया। अगले दिन एक शानदार कार फ्लेमिंग के घर के दरवाज़े पर आकर रूकी। उसमें से एक संभ्रांत व्यक्ति बाहर उतरा और फ्लेमिंग की ओर बढ़कर बोला-मैं उस लड़के का पिता हूँ जिसकी तुमने कल जान बचाई थी। उसे बचाकर तुमने मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है। इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। इसके बदले मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ। इस पर फ्लेमिंग बोला-"नहीं श्रीमान्! मैंने जो कुछ किया, वह मेरा फर्ज था। मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे खुशी है कि मैं आपके बेटे की जान बचा पाया। इतने में फ्लेमिंग का बेटा बाहर निकलकर अपने पिता के पास खड़ा हो गया। उसे देखकर वह व्यक्ति बोला-"क्या ये तुम्हारा बेटा है?' फ्लेमिंग ने हामी भरी। वह व्यक्ति बोला-"तुमने मेरे बेटे के लिए किया। अब मैं तुम्हारे बेटे के लिए कुछ करना चाहता हूँ। इसे सौदा नहीं, मेरी भावना समझना। मैं चाहता हूँ कि मैं तुम्हारे बेटे की शिक्षा का सारा खर्च उठाऊँ।' मैं इसका पूरा ख्याल रखूँगा। यह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में बड़ा होगा जिस पर कि हम सभी को गर्व होगा। फ्लेमिंग उस व्यक्ति के आग्रह को ठुकरा नहीं पाया और उसके लड़के ने लंदन से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की। बाद में फ्लेमिंग का यह लड़का एलेक्ज़ेंडर फ्लेमिंग के नाम से जाना गया। वे ही फ्लेमिंग जिन्होने पेनिसिलिन के टीके का आविष्कार किया। इस आविष्कार के कुछ दिन के बाद ही उस संभ्रांत व्यक्ति का बेटा बीमार हो गया। उसे खतरनाक न्यूमोनिया हुआ था। तब इसी टीके से उसकी जान बची। जानते हैं वह संभ्रांत व्यक्ति कौन था। वे थे लार्ड रेंडाल्फ चर्चिल और उनका बेटा। आप समझ ही गए होंगे। जी हाँ, ब्रिाटेन के महानतम प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल।
दोस्तो, इसे कहते हैं जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। यदि आप दूसरों के साथ अच्छा करोगे तो आपके साथ भी अच्छा ही होगा। और यदि आप दूसरों के साथ बुरा करोगे तो आप कितने ही बड़े क्यों न हों, आपके साथ भी बुरा होकर ही रहेगा। आप उससे बच नहीं पाएँगे। लेकिन बहुत से ताकतवर लोग अपनी ताकत के मद में यह बात भूल जाते हैं या यह कहें कि वे इस बात को जानकर भी नहीं जानना चाहते । उन्हें लगता है कि वे अपनी किस्मत को अपने हिसाब से मोड़ सकते हैं, कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यदि आप भी इसी सोच के हैं, तो हम चाहेंगे कि आप इस गलतफहमी को दूर कर लें। आप कितने ही बड़े आदमी बन जाएँ, आपको अपने किए का परिणाम तो भुगतना ही होगा। यदि आपने गलत किया है तो आपके साथ भी गलत होगा। कई लोग यह समझ ही नहीं पाते कि उनके साथ बुरा क्यों हुआ। जबकि जाने-अनजाने में वे अवश्य ही कुछ ऐसा कर चुके होंगे जिसकी सजा अब भुगत रहे हैं। वे अपने किए को भले ही दुनियाँ से छुपा लें, लेकिन ईश्वर से और अपने आप से तो कुछ भी छुपा नहीं सकते। और वे जो भी गलत करते हैं, उसकी सजा आज नहीं तो कल उन्हें भुगतनी ही पड़ती है। अब वह किस रूप में भुगतनी पड़ेगी, यह नहीं कहा जा सकता। ऊपर वाले की लाठी उन पर चलेगी ही। और वह लाठी जब पड़ती है तो आवाज़ भी नहीं होती। इसलिए यदि आप अपने जीवन में सब कुछ अच्छा चाहते हो, तो दूसरों के लिए भी अच्छा करो। ज़रूरतमंदों की सहायता करो, लोगों का सहयोग करो, सेवा से कभी चूको मत, परायों के काम आओ। तब आपको भी वही सब सुख और खुशियां मिलेंगी जो आपने दूसरों को बाँटी थीं। वैसे भी दूसरों के लिए करने में जो आनंद मिलता है, वह अतुलनीय होता है।
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