Tuesday, January 26, 2016

रहकर भी पा सकते हो और छोड़कर भी


     एक संत के पास एक भक्त आया। उसने पूछा-"स्वामी जी, क्या घर में रहकर ही व्यक्ति सांसारिक बंधनों से विरक्त रहकर मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता?' संत ने जवाब दिया- "क्यों नहीं, अपने घर को छोड़े बिना भी व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हम सभी के सामने महाराज जनक का उदाहरण है, जो सांसारिक बंधनों के बीच रहकर भी विदेह कहलाए।' संत की बात से आश्वस्त होकर वह लौट गया। कुछ दिन बाद एक दूसरा भक्त संत के पास आया वह बोला, "स्वामी जी, मुझे लगता है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए घर का त्याग ज़रूरी है। आपका क्या कहना है?' संत बोले, तुम्हारा सोचना एकदम ठीक है। घर-गृहस्थी की बातें तुम्हें तुम्हारे मार्ग से भटकाती रहेंगी। ऐसे में तुम अपना लक्ष्य कभी प्राप्त नहीं कर पाओगे। यदि ऐसा न होता तो हमारे ऋषि-मुनि, संत महात्मा घर-बार छोड़कर एकांत में जाकर तपस्या क्यों करते? तुम ऐसा ही करो। वह भक्त भी संतुष्ट होकर चला गया।
     वहाँ से वह सीधे अपने मित्र के पास पहुँचा और उसे संत की बात बताई। उसकी बात सुनकर मित्र हैरान रह गया। उसका हैरान होना स्वाभाविक था, क्योंकि वह वही व्यक्ति था जिसे संत ने घर में रहकर ही मोक्ष प्राप्ति की बात कही थी। वे दोनों संत के पास पहुँचे और उनसे इस बात का कारण पूछा। संत बोले- "मैने तुम दोनों की मनोवृत्तियाँ देखकर ही हँा में हाँ मिलाई थी। तुममें से एक की मनोवृत्ति घर पर ही रहने और दूसरे की घर छोड़ने की थी। चूँकि मोक्ष प्राप्ति दोनों ही मार्गों से संभव है, इसलिए मैने तुम्हें वैसा करने से रोका नहीं।'
     दोस्तो, सही तो है। जब दोनों ही रास्ते मोक्ष की ओर ले जाते हों तो फिर जिस रास्ते से जाने का आपका मन है, उसी से जाओगे तो लक्ष्य तक पहुँचना आसान हो जाएगा। वैसे भी जब राह अपने मन की होगी तो उस रास्ते से जाने में मन में कोई संदेह नहीं होगा, मन में कुछ अटकेगा नहीं, खटकेगा नहीं। तब आप अधिक जोश और उत्साह से रास्ता आसानी से नाप लोगे।

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