Monday, January 25, 2016

ज़रूरत से ज्यादा खाना माने सुख-चैन खोना


     राजा प्रसेनजित को जंगली घोड़ों को पकड़ने के खेल में बड़ा मज़ा आता था। वे घंटोें तक बिना थके घोड़ों का पीछा करते रहते थे और जब तक पचास घोड़े नहीं पकड़ लेते, दम नहीं लेते थे। लेकिन धीरे-धीरे उनकी चुस्ती-फुर्ती गायब होने लगी। क्योंकि खाने पर नियंत्रण न रख पाने से उनके शरीर का वजन बढ़ता जा रहा था। इससे जल्दी ही उनकी साँस फूल जाती थी। बढ़ते वजन से जहाँ उनकी निष्क्रियता बढ़ी, वहीं वे चिड़चिड़े और आलसी भी हो गए।
     प्रसेनजित बुद्ध के बड़े भक्त थे। एक बार बुद्ध उनके नगर कौसल पधारे। अपने भतीजे सुदर्शन के साथ वे बुद्ध के पास पहुँचे, उन्हें प्रणाम किया और बैठकर प्रवचन सुनने लगे। वहाँ आने से पहले उन्होने जमकर भोजन किया था, जिसकी वजह से उन्हें नींद आने लगी। नींद भगाने के लिए बार-बार वे खुद को चिमटी काटते या आँखें मलते। इस कारण वे ढंग से प्रवचन नहीं सुन पाए। प्रवचन खत्म होने पर बुद्ध ने उनसे पूछा-राजन्! क्या आपने यहाँ आने से पहले विश्राम नहीं किया था? राजा ने कहा, नहीं, ऐसी बात नहीं है प्रभु। भोजन करने के बाद मेरी यही हालत हो जाती है। बुद्ध ने कहा- यानी तुम ज्यादा खाते हो। ज्यादा खाने वाले व्यक्ति की ही ऐसी हालत होती है। तुम्हें भोजन पर नियंत्रण रखना चाहिए। तुम जब भी खाने बैठो, तब यह मंत्र बोलो- "संतुलित खाने वाला ही लंबे समय तक युवा और सक्रिय बना रहता है।' इससे तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी। राजा ने कहा-भंते, आजकल मेरी स्मृति भी कमजोर हो गई है, पता नहीं मैं यह बात भी याद रख पाऊँगा कि नहीं। बुद्ध ने कहा-यह भी तुम्हारे अधिक खाने का नतीजा है। कोई बात नहीं। तुम्हारी बेहतरी के लिए यह काम सुदर्शन करेगा। इसके बाद वे लौट आए और सुदर्शन अपना काम पूरी ईमानदारी से करने लगा। जब भी प्रसेनजित ज्यादा खाने की माँग करते, वह बुद्ध द्वारा दिया मंत्र दोहरा देता। समय के साथ उनका वजन कम होने लगा और उन्होने खुद ही खाने पर नियंत्रण रखना भी शुरू कर दिया। उससे उनकी चुस्ती-फुर्ती लौट आई। वे फिर से एक ही दिन में पचास घोड़े पकड़ने लगे।
     दोस्तो, देखा आपने ज्यादा खाने से क्या-क्या नुकसान होते हैं। इससे व्यक्ति का वजन बढ़ता है वह आलसी होने लगता है, उसकी याददाश्त कमजोर होने लगती है। इन सबके कारण वह अपनी उम्र से बड़ा दिखने लगता है। यानी केवल जीभ पर नियंत्रण न रख पाने की वजह से वह अपने दिल और दिमाग पर से भी नियंत्रण खो देता है। कह सकते हैं कि बढ़ती चर्बी व्यक्ति के दिल ही नहीं, दिमाग को भी प्रभावित करती है। सोचें आप, कितना नुकसानदेह है ज्यादा खाना। इन सबसे बचने का तरीका यही है कि व्यक्ति अपनी जीभ पर नियंत्रण रखे। यह बात खाने और बोलने दोनों पर लागू होती है।
     कहते हैं अति किसी भी चीज़ की अच्छी नहीं होती तो फिर खाने में अति कैसे अच्छी हो सकती है। यह अति भी हानिकारक होती है। ज्यादा खाने से जब मोटापा बढ़ता है तो वह अपने साथ लाता है नई नई बीमारियाँ। जिसके चलते आदमी अपना सुख-चैन खो देता है। यदि आप इन बीमारियों से बचना चाहते हैं और हमेशा एक जैसी फुर्ती से काम करते रहना चाहते हैं तो एक बात की गाँठ बाँध ले कि आज से खाने के लिए नहीं जीएँ बल्कि जीने के लिए खाएँ। यानी आप हमेशा संतुलित भोजन करें। एक ही बार में अधिक खाने की बजाय तीन बार में थोड़ा-थोड़ा खाएँ। आप सुबह का खाना जमकर करें। लंच में कम खाएँ और डिनर में तो और भी कम खाएँ। यदि आपने यह शुरू कर दिया तो फिर आप कभी मोटे नहीं होंगे। आप सोच रहे होंगे कि हम खाने के पीछे पड़ गए हैं। आपका सोचना ठीक है, लेकिन ये बातें हमने इसलिए दोहराई हैं कि यह मामला आपकी सेहत से जुड़ा है और यदि आपकी सेहत ही अच्छी नहीं रहेगी तो बाकी बातें बेमानी हैं। वो कहते हैं न कि "पहला सुख निरोगी काया।' इसलिए संतुलित भोजन कर काया को संभाल और सँवारकर रखें तभी आप माया का सुख भोग पाएँगे। लेकिन पकवानों का मज़ा लेते समय बुद्ध का मंत्र ज़रूर याद करते रहिएगा। है न फायदे की बात।

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