Sunday, January 24, 2016

यदि हो चुके हो आदी तो हो जाओगे आदि


     मगध का राजा श्रेणिक अहिंसावादी और शाकाहारी था। उसके राज्य में एक कसाई था, जो रोज लगभग पाँच सौ भैंसे काटता था। राजा के अधिकारियों ने उस कसाई को यह काम छोड़ने के लिए कई तरह के प्रलोभन दिये। लेकिन वह नहीं माना। क्योंकि उसे तब तक शांति नहीं मिलती थी, जब तक कि वह पाँच सौ भैंसे न काट ले। अंततः एक दिन राजा ने उसे अपने दरबार में बुलवाया।
     जब वह दरबार में पहुँचा तो राजा बोला- "यदि तुम राजी-मर्जी से यह हिंसा करना नहीं छोड़ोगे तो तुम्हें कठोर दंड दिया जाएगा।' कसाई बोला-"महाराज! मैं अपनी आदत का गुलाम हूँ। यह काम छोड़ूँगा तो मैं मर जाऊंगा। जिस दिन यह काम नहीं करता, उस दिन बेचैनी इतनी बढ़ जाती है कि घबराकर मुझे फिर से अपना काम चालू करना पड़ता है। इसलिए मैं यह काम नहीं छोड़ूँगा।' उसकी बात सुनकर राजा को क्रोध आ गया। उसने दंड सुनाया- "इस कसाई को अन्धे कुएँ में डाल दो। देखें इसकी आदत कैसे नहीं छूटती।' राजाज्ञा का तुरंत पालन हुआ और कसाई को कुएँ में डाल दिया गया।
     कुछ दिन बाद उसे निकालकर राजा के सामने हाज़िर किया गया। राजा बोला- "इतने दिनों से तुमने एक भी भैंसा नहीं मारा और तुम जिंदा हो। आखिर तुम्हारी यह आदत छूट ही गई।' कसाई बोला-"नहीं महाराज, मेरी आदत नहीं छूटी।' राजा ने पूछा- "यह कैसे हो सकता है? कुएँ में तुम्हें भैंसे कहाँ से मिलीं?' कसाई ने कहा- "जी, मैं रोज कुएँ में मिट्टी के पाँच सौ भैंसे बनाकर उनको हलाल करता था।
    दोस्तो, देखा आपने। आदतें क्या गुल खिला सकती हैं। इसीलिए आदतों को रोकना ज़रूरी है, वरना ये ज़रूरतें बन जती हैं और अपने हिसाब से व्यक्ति को चलाने, निर्देशित करने लगती हैं। इस तरह ये आपके स्वामी या मालिक की तरह व्यवहार करने लगती हैं। और जब ऐसा होने लगे तो इससे बुरी स्थिति कोई हो नहीं सकती। इसीलिए आदतों के बारे में कहा गया है कि वो सेवक के रूप में जितनी अच्छी होती है, काम की होती हैं, स्वामी के रूप में उतनी ही बुरी। स्वामी के रूप में ये व्यक्ति के सिर चढ़कर बोलती हैं। वह इनका ऐसा गुलाम हो जाता है कि इनके बिना उसे अपना अस्तित्व ही नज़र नहीं आता। यकीन नहीं आता तो किसी नशेबाज़ से पूछो कि बिना नशा किए उसकी क्या स्थिति होती है। अब नशा कैसा भी हो। जिसको जिस नशे की आदत पड़ चुकी हो, वह उसके बिना रह ही नहीं सकता।
     ऐसी ही स्थिति उन लोगों की भी होती है, जो बहुत समय से एक ही काम कर रहे हों, एक जैसी ज़िन्दगी जी रहे हों। उन्हें वैसा ही करने या जीने की आदत पड़ जाती है। यदि इन लोगों से अपनी जीवनशैली या कार्यशैली बदलने को कहा जाए तो इनके ऊपर आसमान टूट पड़ता है। ये परिवर्तन का विरोध करते हैं, क्योेंकि इनकी आदतें ऐसा नहीं चाहती। इनके दिमाग में यह बैठा रहता है कि जो रोज कर रहे हैं या जैसा करते आ रहे हैं, वैसा नहीं करेंगें तो कुछ नहीं कर पाएँगे। ऐसी सोच गलत है।
     यदि आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो अपनी आदत को बदलें। आप आदत पर हावी हों, आदतें आप पर नहीं। यदि कोई बुरी आदत है और आसानी से छूटती नज़र नहीं आती तो उसका विकल्प तलाशें। जैसे कि कसाई ने मिट्टी के भैंसे बनाकर हलाल करना शुरू कर दिया और उसके मन ने इसे स्वीकार कर लिया। वैसे ही आप भी कोई विकल्प तलाशें। जैसे आपकी गुटखा खाने की आदत है तो सौंफ खाएँ या कोई और अच्छा विकल्प तलाशें। ऐसे ही हर चीज़ का विकल्प हो सकता है। और इस विकल्प को आप खुद तलाशेंगे तभी आपके मन को स्वीकार्य होगा। हमारे बताने से नहीं।
     दूसरी ओर, हम यह नहीं कहते कि सारी आदतें बदल डालें। कुछ आदतें अच्छी भी होती हैं। जैसे रोज सुबह उठकर व्यायाम करने या घूमने की आदत। ऐसी अच्छी आदतों कोे बदलना नहीं चाहिए। हाँ, व्यायाम की जगह या घूमने के रास्ते को बदलते रहना चाहिए, जिससे कि दिमाग में रास्ते या जगह को लेकर ही कोई बात न बैठ जाए। इसी तरह आप लगातार अपने काम और जीने के तरीके में बदलाव लाते रहेंगे तो आप किसी चीज़ के आदी नहीं बनेंगे। और यदि आदी नहीं हुए तो कभी "आदि' भी नहीं होंेंगे यानी आप विचार और व्यवहार से कभी पुराने नहीं होंगे बल्कि "अऩादि' रहेंगे, हमेंशा तरोताज़ा रहकर समय के साथ चल पाएँगे।

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