Thursday, January 21, 2016

सम्मिलित शक्ति से ही बनती है महाशक्ति


     एक बार दैत्यराज महिषासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्र का सिंहासन हथिया लिया और तीनों लोकों पर अत्याचार शुरू कर दिया। सभी "त्राहिमाम्' कर उठे। देवता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे, क्योंकि उसे स्त्री के हाथों मारे जाने का वरदान मिला था। ऐसे  में सभी देवता ब्राहृा, विष्णु और महेश के पास पहुँचे। देवताओं की बात सुनकर तीनों की भृकुटियाँ तन गई। इससे उनके मुख से महातेज़ प्रकट हुए। सभी तेज़ मिलकर तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाली एक महाशक्ति के रूप में परिवर्तित हो गए।
     तत्पश्चात सभी देवताओं ने अपने-अपने अमोघ अस्त्र-शस्त्रों से उन्हें सुसज्जित किया। इसके बाद महाशक्ति देवी सिंह पर सवार हो महिषासुर का नाश करने निकल पड़ी। उनके अट्टहास से तीनों लोक काँप उठे। महिषासुर उस आवाज़ का पता लगाने बाहर आया तो देखा कि एक नारी सिंह पर सवार होकर आई है। देवी ने महिषासुर को देखकर उसे युद्ध के लिए ललकारा। उसने असुरों को देवी पर हमला करने का आदेश दे दिया। असुर देवी पर हमला करने लगे तब देवी ने जोर की साँस ली, जिससे हज़ारों गण पैदा हो गए। असुरों और गणों में महासंग्राम छिड़ गया। देवी ने असुरों का विनाश शुरू कर दिया। जिसे देखकर महिषासुर तिलमिला उठा। उसने भैंसे का रूप धारण किया और फुँफकारता हुआ देवी पर झपटा। देवी ने उसे अपने पाश में बाँध लिया। जब वह नहीं छूट सका तो सिंह का वेश धरकर झपटा। देवी ने उसका सिर काट दिया, लेकिन तब तक वह शरीर छोड़ चुका था और अनेक रूप रख-रखकर देवी पर हमले कर रहा था। देवी हर बार उसका शीश काटती लेकिन तब तक वह दूसरे रूप में आ जाता। युद्ध के नौवें दिन एक बार फिर उसने भैंसे के रूप में हमला किया। इस बार देवी ने उसका शीश काटने से पहले उसे अपने पाँव के नीचे दबा लिया। इसके बाद शीश काट दिया। शीश कटते ही महिषासुर जैसे ही उस भैंसे के मुख से निकलने लगा, देवी ने तलवार के वार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उसके मरते ही देवताओं में हर्ष की लहर दौड़ गई। सभी देवी महाशक्ति की जय-जयकार करने लगे। इस तरह आसुरी वृत्ति पर दैवी वृत्ति की विजय हुई।
     दोस्तो, उस महिषासुर को तो देवी जगदंबा ने मार दिया था, लेकिन उस महिषासुर का क्या करें, जो हमारे अंदर बसता है। हमारी भोग-विलास की वृत्तियाँ। महिष माने होता है भैंसा। भैंसा प्रतीक है स्वार्थ का। और आज समाज इसी महिष प्रवृत्ति की गिरफ्त में है। इसी महिषासुर से पीछा छुड़ाने के लिए ही नवरात्रि के नौ दिन देवी का आह्वान किया जाता है ताकि वे हमारी आसुरी वत्तियों का अंत करें।
     दूसरी ओर, इस कथा में एक और संदेश छिपा है। वह है टीम भावना का, संगठन का, जिस शक्ति ने महिषासुर का मुकाबला कर उसे परास्त किया, वह सभी देवताओं के सम्मिलित तेज़ का परिणाम थी। ऐसे ही किसी भी संस्था की सफलता तभी संभव है, जब उसमें काम करने वाले लोग मिलकर एक टीम की तरह काम करें। ऐसे में उन सभी की छोटी-छोटी शक्तियाँ मिलकर एक बड़ी महाशक्ति बन जाती हैं। फिर ऐसी महाशक्ति के सामने बड़े-बड़े सूरमा भी नहीं टिक पाते। यानी ऐसे में प्रतिद्वंद्वी चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, वह परास्त होता ही है। इसलिए हमें हमेशा संगठन की भावना से काम करना चाहिए। इसी संगठन भावना को बढ़ाने के लिए ही गरबा की शुरूआत हुई, जिसमें सभी लोग माँ के चारों ओर घूमकर उनसे सद्बुद्धि माँगते हैं। तब सभी के मन में एक शुद्ध भाव होता है और शुद्ध भाव रखना भी चाहिए। वरना यदि आप असुरवृत्ति रखकर गरबा करोगे तो एक न एक दिन माँ आपको उसका दंड देगी ही। आज भले ही असुरवृति के पाश में बँधकर आप उसे न समझ पा रहे हों, लेकिन जिस दिन समझेंगे, तब तक देर हो चुकी होगी। इसलिए गरबे के असली भाव को समझकर ही गरबा करें। तभी तो माँ प्रसन्न होकर आपको शक्ति देंगी।
     अंत में, आज माँ से सच्चे दिल से प्रार्थना करें कि वे आपको इतनी शक्ति प्रदान करें, जिससे कि आप अपने लक्ष्य को पा सकें। साथ ही माँ से यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके अंदर महिष प्रवृत्ति यानी स्वार्थ की भावना को न पनपने दें और आप टीम भावना से काम करते रहें। यदि पनप चुकी है, तो वे उसका शीश काट दें।

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