Saturday, January 16, 2016

16.01.2016 जिंदा दिए न कौरा, मरे खवाए चौरा


     कौसल नरेश प्रसेनजित और मगध सम्राट अजातशत्रु रणभूमि में आमने-सामने थे। प्रसेनजित अपने मित्र और अजातशत्रु के पिता बिंबिसार की हत्या का बदला लेने के लिए रणभूमि में उतरे थे। अजातशत्रु ने सत्ता-प्राप्ति के लिए अपने ही पिता का वध करवा दिया था। प्रसेनजित ने जल्द ही अजातशत्रु को चारों ओर से घेरकर निहत्था कर दिया। जब वे अजातशत्रु का सिर काटने ही वाले थे कि उसकी आँखों के भाव देखकर उनके हाथ थम गए। तभी अजातशत्रु चिल्लाया, "रुको मत, मुझे मार डालो। तभी मुझे शांति मिलेगी। उसकी बात सुनकर प्रसेनजित हैरान रह गए। उन्होंने उससे इसका कारण पूछा, तो वह बोला-""महाराज! जिस दिन मैने अपने पिता के वध का आदेश दिया था, उसी दिन मेरा पुत्र भी पैदा हुआ था। उसे गोद में लेते ही मुझे बोध हुआ कि अपने पुत्र के लिए एक पिता के मन में कैसे भाव आते हैं। वैसे ही भाव मेरे पिता के मन में भी मेरे जन्म के समय आए होंगे। मैने तुरंत अपना निर्णय बदला और सैनिकों को वधशाला की ओर दौड़ाया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उस दिन से मैं अपराधबोध से ग्रसित हूँ। मेरे मन का सारा चैन, सारी शांति खो चुकी है। इसलिए मैं मरना चाहता हूँ। उसकी बात ध्यान से सुन रहे प्रसेनजित बोले- इस तरह तो तुम मरकर भी शांति नहीं पा सकोगे। शांति के लिए तो तुम जीवन की कामना करो। इसके बाद मगध लौटकर उसने अशांति से छुटाकारा पाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। अपने आपसे भागने के लिए उसने फिर युद्ध शुरू कर दिए, लेकिन युद्ध जीतकर भी वह खुद को नहीं जीत पाया। हर जीत के बाद मायूसी उसे घेर लेती थी। अंततः अपने वैद्य और मित्र जीवक की सलाह पर वह गौतम बुद्ध की शरण में गया और शांति पाई।
     दोस्तो, जिस सत्ता के लिए अजातशत्रु ने अपने पिता का वध करवाया, उसका सुख वह ज़िंदगी भर नहीं भोग पाया। आरामदेह बिस्तर पर कभी चैन की नींद नहीं सो पाया। वह हमेशा अपने आप से भागता रहा। आदमी दुनियाँ से तो भाग सकता है, लेकिन खुद से नहीं। दुर्भाग्य से आज भी समाज में कई ऐसे लोग मौजूद हैं, जो अपने पालकों का शारीरिक रूप से भले ही नही मानसिक रूप से ज़रूर वध कर देते हैं और बाद में पश्चाताप करते हैं। आप भी ऐसे कई बेटों को जानते होंगे। ऐसे लोगों को हम आगाह करना चाहेंगे कि ऐसा करके आपको कुछ हासिल नहीं होगा। अपने पालकों के दिल को दुःख पहुँचाकर आप कभी चैन से नहीं रह पाएँगे। एक न एक दिन आपको अपनी गलती का अहसास होगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। आप चाहकर भी कुछ नहीं कर पाएँगे। बस, अजातशत्रु की तरह खुद से ही भागते रहेंगे।
 

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