Wednesday, January 6, 2016

खुद को ही छलते हैं, दूसरों को छलने वाले

     एक राजा को नए प्रधानमंत्री की तलाश थी। इसके लिये उन्हें ईमानदार और भरोसेमंद व्यक्ति की तलाश थी। उपयुक्त व्यक्ति के चयन के लिए नगर में विभिन्न प्रतियोगिताएँ आयोजित की गर्इं। अंततः दस लोगों का चयन कर उन्हें राजा के सामने पेश किय गया। राजा ने अंतिम परीक्षा के लिए सभी उम्मीदवारों को कुछ बीज दिए। राजा बोला-आपको इन बीजों को रोपकर दो माह तक देखभाल करनी है। जिसका पौधा सबसे हरा-भरा होगा, वही विजेता होगा। सभी उन बीजों को लेकर अपने-अपने घर चले गए। उन्होने गमले में बीजों को बो दिया। प्रतियोगिता में रणवीर नाम का एक युवक भी था, जो अब तक की सभी परीक्षाओं में शीर्ष पर रहा था। बीजों को रोपने के बाद वह भी उनकी अच्छी तरह से देखभाल करने लगा, लेकिन कई दिन गुज़र जाने के बाद भी बीज अंकुरित नहीं हुए। कुछ सोचकर उसने बीजों को नए गमले में डाल दिया। उसने समुचित मात्रा में खाद-पानी डाला, लेकिन बीज फिर भी अंकुरित नहीं हुए। इस पर भी रणवीर ने हिम्मत नहीं हारी। वह लगातार प्रयास करता रहा। अन्ततः अंतिम परीक्षा की घड़ी भी आ गई। सभी उम्मीदवार अपने-अपने पौधे लेकर राजा के समक्ष उपस्थित हुए। उनके गमलों में हरे-भरे पौधे लहलहा रहे थे। यह देखकर रणवीर उदास हो गया। तभी राजा वहाँ आए। उन्होने एक-एक प्रतियोगी के पास जाकर उनके पौधे का मुआयना किया। प्रतियोगियों ने राजा को बताया कि अथक परिश्रम के बाद वे पौधों को कैसे इस स्थिति में ला पाए हैं। अंत में राजा रणवीर के सामने आए और उसके खाली गमले को देखकर बोले-तुम्हारा पौधा कहाँ गया? रणवीर बोला-क्षमा करें महाराज, मैं बीज को अंकुरित कराने में सफल नहीं हो पाया। मैं हार गया। इस पर राजा बोला- नहीं प्रधानमंत्री जी, आप कैसे हार सकते हैं। आखिर आप रणवीर हैं। राजा की बात सुनकर सभी हैरान रह गए। इसके पहले कि कोई कुछ कहता राजा ने घोषणा की-रणवीर आज से हमारे नए प्रधानमंत्री हैं। क्योंकि इन्होने पूरी ईमानदारी से मेहनत की और छलने की कोशिश नहीं की। हमने सभी को उबले हुए बीज दिए थे, जिनका अंकुरण संभव ही नहीं था। निश्चित ही शेष सभी प्रतियोगियों ने बीज बदलकर पौधे उगाए हैं। ये सभी धोखेबाज़ हैं। आशा है आप सभी हमारे इस निर्णय से सहमत होंगे।
     निश्चित ही राजा का फैसला उचित था। इसलिए कोई असहमत कैसे हो सकता था। इस तरह एक होनहार युवक, ईमानदारी के बल पर कई अनुभवी और वरिष्ठ लोगों को पीछे छोड़कर प्रधानमंत्री का पद पाने में सफल रहा। हारने का अंदेशा होने के बाद भी उसने सफलता पाने के लिए गलत तरीका नहीं अपनाया। यहाँ तक कि उसके दिमाग में भी यह बात नहीं आई कि यह मौका यदि उसने खो दिया तो दोबारा ऐसा अवसर मिलना मुश्किल है।
     आज भी कई बार देखने में आता है कि लोग सफलता के लिए तरह तरह के अनैतिक तरीके अपनाते हैं। रिश्वत देना, नकली डिग्रीयाँ बनवाना, उल्टे-सीधे सर्टिफिकेट तैयार करवा लेना आदि गलत तरीके ही हैं। इनके सहारे कई बार लोग उच्च पद तक हथिया लेते हैं। यह धोखा नहीं तो और क्या है? ऐसा करके नौकरी पाने वालों को हम कहना चाहेगे कि वे धोखे में हैं कि उन्हें सफलता मिल गई। सफलता तो तब मिलेगी जब वे खुद को साबित कर देंगे। प्रायः ऐसे लोग अपने आप को साबित नहीं कर पाते और एक दिन ऐसे उलझते हैं कि फिर उन्हें बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिलता। यदि आप भी ऐसा करने की सोच रहे हैं तो अपना फैसला तत्काल बदल दें। क्योंकि अनैतिक तरीकों  से मिली सफलता कभी फलीभूत नहीं होती। वह एक दिन हमारे हिसाब-किताब चुकता कर ही देती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो धोखा देकर सफलता हासिल करने वाला व्यक्ति किसी और को नहीं स्वयं को ही धोखा देता है। और इससे बड़ा धोखा कोई और हो नहीं सकता। क्योंकि आप किसी और को नहीं खुद को छल रहे हैं। कहते हैं सबसे बड़ा और खराब धोखा है खुद को धोखा देना। इसलिए बेहतर है कि अपने साथ धोखेबाज़ी से बाज़ आएँ। क्योंकि धोखा कभी आपकी ज़िन्दगी में चोखा रंग नहीं ला सकता। यह तो रंग बिगाड़ता है।

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