एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे। उन्होंने अपने सामने रखे एक गमछे को उठाया और शिष्यों के सामने उसमें गाँठें बाँधने लगे। इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा-"क्या आप बता सकते हैं कि पहले के गमछे और इस गमछे में क्या अंतर है?' एक भिक्षु बोला-"नहीं, कोई अंतर नहीं है। पहले भी यह गमछा था, अब भी गमछा ही है। हाँ, इसमें गाँठें ज़रूर लग गई हैं। ऊपर से देखने पर यह भले ही बदला हुआ लगे, लेकिन अंदर से तो इसमें कोई अंतर नहीं आया है।' इस पर बुद्ध बोले-" बिलकुल ठीक कहा तुमने। इस गमछे की तरह ही होता है हमारा मन। अपने मन में कई तरह की गाँठें बाँधकर रखने की वजह से ही हम बदले हुए नज़र आते हैं, जबकि हम वैसे के वैसे ही रहते हैं।' एक भिक्षु बोला-"भंते, लेकिन ये गाँठें खुलेंगी कैसे?' बुद्ध बोले- "जैसे कि लगाई गई थीं। यदि हमें यह मालूम हो कि गाँठें कैसे लगी थीं। तो हमें उन्हें खोलने का तरीका भी मालूम पड़ जाएगा। यही बात संसार पर भी लागू होती है। जब तक हमें यह नहीं पता चलेगा कि संसार किन बंधनों में जकड़ा हुआ है, तब तक उन बंधनों से बचने का रास्ता कैसे पता चलेगा? इसलिए पहले बंधनों का पता लगाओ। इनका पता लगते ही मुक्ति का उपाय सूझने लगेगा।
दोस्तो, सही तो है कि जिसने गाँठ लगाई है, वही तो उसे खोलेगा या खोल पाएगा। क्योंकि उसी को तो पता होगा कि उसने गाँठ किस तरीके से लगाई। और गाँठ जिस तरीके से लगाई गई थी, उसी तरीके से खुलेगी भी। दूसरे तरीके से खोलने जाओगे तो वह खुलने की बजाए और भी कस जाएगी, या फिर उलझ जाएगी। तब उसे खोलना और भी मुश्किल हो जाएगा। यही कारण है कि बहुत से लोग अपने ही द्वारा लगाई गई गाँठों को खोल नहीं पाते। यहाँ हम मन में लगने वाली गाँठों की बात कर रहे हैं। वे इसलिए नहीं खोल पाते, क्योंकि वे उन गाँठों को या तो दूसरे तरीके से खोलने की कोशिश करते हैं या फिर उन्हें खोलने के लिए दूसरे की सलाह लेने लगते हैं। अब जिस व्यक्ति ने वह गाँठ लगाई ही नहीं, तो वह उसे खोलने का तरीका कैसे बता पाएगा। यदि बताएगा भी तो उसके बताए तरीके से वह खुलेगी नहीं, उलझ जाएगी। इसी कारण अपनी गाँठ दूसरे से खुलवाने वाले अधिकतर लोगों की गाँठें उलझ ही जाती हैं। और अंततः गाँठें लगाकर बैठने वाले ही बड़ी मुश्किल से उन उलझी हुई गाँठों को खोल पाते हैं।
उसी तरह से हम भी न जाने कितनी तरह की गाँठें अपने मन में बाँधकर बैठे हैं, कितने ही तरह के बंधनों में हमने अपने आपको जकड़ रखा है और इन्हीं बंधनों के कारण हम तनाव में जीते हैं। यदि आप इन बेमतलब के तनावों से मुक्त होना चाहते हों, तो जितनी जल्दी हो सके, इन गाँठों को खोल लें। यदि आप इसमें देरी करेंगे तो फिर इन्हें खोलना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि मन में पड़ी गाँठों को खोला न जाए तो गाँठ पर गाँठ पड़ती जाती है यानी मामला सुलझने की बजाए उलझता जाता है। कई बार गाँठ इसलिए भी नहीं खुलती कि अधिक समय बीत जाने पर गाँठ लगाने वाला उसे खोलने का तरीका ही भूल जाता है। तब वह चाह कर भी उन्हें खोल नहीं पाता या फिर बड़ी मुश्किल से खोल पाता है। अब जो चीज़ मुश्किल से खुलती है, वह अपने पीछे एक न एक दाग, एक निशान छोड़ ही जाती है। यदि आप भी अपनी ही लगाई गाँठ को खोलने का तरीका भूल चुके हैं तो उसे याद करने से पहले यह जानें कि आपके मन में गाँठ किस चीज़ की लगी है। यदि वह आसक्ति की गाँठ है, तो वह खुलेगी अनासक्ति से, यदि वह क्रोध की गाँठ है, तो वह खुलेगी शांति से, यदि वह ईष्र्या या जलन की गाँठ है, तो वह खुलेगी प्रेम से। इसी प्रकार हर गाँठ के खुलने का तरीका होता है। आप इन तरीकों से एक-एक कर इन गाँठों को खोलते जाएँ। फिर देखें आप कैसे सुख व शांति से युक्त जीवन जिएँगे। तब कोई गाँठ आपको परेशान नहीं करेगी, कोई बंधन आपको नहीं रोकेगा।
अंत में, हमारी एक बात आप अपनी गाँठ से बाँध लें कि मन में लगी गाँठ कैसी भी हो, परेशान ही करती है। इसलिए अव्वल तो मन में गाँठें पड़ने ही न दें। पड़ भी जाएं तो इन्हें समय रहते खोल लें।
No comments:
Post a Comment