Friday, January 8, 2016

12.01.2016 छिपी संभावनाओं में छिपा होता है भविष्य


     एक बार एक शिक्षक अपनी कक्षा में आए और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए बोले कल हम कक्षा प्रतिनिधि का चयन करेंगे। इसके लिए मैं आप सभी की बुद्धिमत्ता की परीक्षा लूँगा। मैं देखना चाहता हूं कि आप सभी ने अब तक जितना ज्ञान पाया है, उसमें से कितना अपने अंदर समाया है।
     शिक्षक की बात सुनकर एक छात्र खड़ा होकर बोला सर, अभी तक तो कक्षा प्रतिनिधि का चयन उसके प्राप्ताकों के आधार पर होता था। कक्षा में सबसे अधिक नंबर प्राप्त करने वाले छात्र को चुन लिया जाता था। फिर यह नया तरीका क्यों? शिक्षक ने छात्र की बात को ध्यान से सुना और जवाब दिया- आपका कहना ठीक है, लेकिन योग्यता का आधार सिर्फ प्राप्तांक ही नहीं हो सकते। हमारे अंदर सामान्य ज्ञान भी ज़रूरी है। ज़िंदगी हर रोज़ नई तरह से परीक्षा लेती है। इसलिए आप सभी कल पूरी तैयारी से आएँ। ऐसा कहकर शिक्षक कक्षा से चले गए।
     अगले दिन सभी विद्यार्थी पूरी तैयारी से आए। उन्होने सामान्य ज्ञान की पुस्तकों के पन्ने पलट डाले थे। उन्हें लग रहा था, चलो एक मौका मिला है कक्षा प्रतिनिधि बनने का। इसे बिना प्रयत्न के हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। कुछ छात्र तो उनींदे हो रहे थे। उन्होंने पूरी रात परीक्षा की तैयारी करते हुए गुज़ारी थी। कुछ आपस में बात करके यह पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि परीक्षा में क्या पूछा जा सकता है। परीक्षा लिखित होगी या मौखिक। इस तरह अनेक प्रश्न और अनेक जिज्ञासाओं के बीच शिक्षक कक्षा में आए। सभी छात्र एकदम शांत हो गए। शिक्षक ने छात्रों से पूछा- क्या आप सभी परीक्षा के लिए तैयार हैं? जी हाँ! छात्रों ने एक साथ उत्तर दिया। तो प्रश्न बहुत ही सामान्य है। आप सभी को एक-एक कर इस प्रश्न का उत्तर देना है। प्रश्न है-चाँदी, पीतल और लोहा, इन तीनों धातुओं में से सबसे मूल्यवान धातु कौन-सी है? और क्यों?
     शिक्षक का प्रश्न सुनकर कक्षा में हर्ष की लहर दौड़ गई। लगभग हर छात्र सोच रहा था कि कितना आसान प्रश्न है यह। इसके बाद सभी ने क्रम से उसका उत्तर देना शुरु कर दिया। सभी चांदी को मूल्यवान बता रहे थे। मान्यता अनुसार यह सही भी था। इस बीच एक छात्र जो कि काफी चतुर था, बोला-सर! पीतल सबसे मूल्यवान है, क्योंकि वह सोने जैसी दिखती है। उसकी बात पर पूरी कक्षा जोर से हँस दी। छात्र सहम कर बैठ गया। एक के बाद एक छात्र प्रश्न का जवाब दे रहे थे, लेकिन शिक्षक को सही जवाब नहीं मिल रहा था।
     अंत में एक छात्र खड़ा हुआ और बोला- सर! लोहा सबसे मूल्यवान धातू है। शिक्षक ने कहा- अच्छा, लेकिन क्यों? वो इसलिए कि मेरी दृष्टि में पारस पत्थर के स्पर्श से चांदी और पीतल दोनों ही सोना नहीं बन सकते, लेकिन लोहे में यह गुण होता है। चाँदी चाँदी ही रहेगी और पीतल पीतल ही और पारस के स्पर्श से लोहा सोना बनकर उनसे मूल्यवान हो जाता है। अतः मेरा मानना है कि मूल्यवान कोई वस्तु नहीं होती। उसे मूल्यवान बनाती है उस वस्तु में छिपी संभावनाएँ। छात्र की बात सुनकर शिक्षक प्रसन्न हो गए। उन्हें अपने प्रश्न का सही जवाब मिल गया था। उन्होंेने छात्र को अपने पास बुलाकर उसे कक्षा प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया।
     तो देखा आपने। केवल किताबी ज्ञान ही सब कुछ नहीं होता। बुद्धिमान व्यक्ति इस बात को समझते हैं और वे समस्याओं को हल करने में केवल किताबी ज्ञान का उपयोग नहीं करते। उनके पास होता है एक विशेष ज्ञान और यह विशेष ज्ञान हमें मिलता है अपने बड़ों से, बुज़ुर्गों से, गुरुजनों से, सत्संग से और संतों की वाणियों से। कॅरियर में उन्नति के लिए यह विशेष ज्ञान बहुत काम आता है। इसी विशेष ज्ञान के आधार पर छात्र ने प्रश्न का सही जवाब दिया। और उसके उत्तर के पीछे जो तर्क था, वह भी कितना सही था कि मूल्य वस्तु का नहीं, उसके अंदर छिपी संभावनाओं का होता है। यह बात इंसानों पर भी लागू होती है। अगर आपके अंदर संभावनाएँ हैं तो उन्हें निखारा जा सकता है। अगर संभावनाएँ ही नहीं होंगी तो फिर काँच को तो घिस-घिसकर हीरा नहीं बनाया जा सकता।

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