Friday, January 8, 2016

11.01.2016 जहाँ चाह वहाँ राह


     एक गाँव में एक बूढ़ा किसान अपने बेटे के साथ रहता था। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वे दोनों बड़ी मेहनत से खेती करके अपना पेट भरते थे। एक बार किसी चोरी के झूठे आरोप में पुलिस ने उसके बेटे को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। किसान और उसके बेटे ने बहुत समझाया, लेकिन पुलिस ने एक न सुनी। इसके बाद किसान अकेला रह गया। वह पहले ही बूढ़ा था और उस पर इतनी बड़ी विपदा के चलते वह काफी कमज़ोर हो गया, जैसे उसके शरीर की सारी ताकत किसी ने छीन ली हो। वह जैसे-तैसे अपना काम चलाने लगा।
     इस बीच बुवाई का समय निकट आता देख किसान को चिंता सताने लगी। कुछ उपाय न सूझने पर उसने अपने बेटे को पत्र लिखा प्रिय पुत्र, तुम्हारे बिना मैं बहुत असहाय महसूस कर रहा हूँ। मेरी बूढ़ी हड्डियां अब जुताई करने के काबिल नहीं हैं। ऐसा लगता है इस साल हम अपने खेत को जोतकर उसमें फसल नहीं बो पाएँगे और हमारे भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। कल गाँव की चौपाल पर प्रधान जी इस साल अच्छी बारिश होने की बात कर रहे थे। काश, तुम जेल में नहीं होते तो इस बार अच्छी फसल मिलती और हम महाजन का कर्जा चुका देते। पता नहीं भगवान भी हम गरीबों की ही परीक्षा क्यों लेता है? सोच रहा हूँ कि महाजन से थोड़ा-बहुत और उधार लेकर खेत जुतवा दूँ। तुम अपनी राय जल्दी भेजना। तुम्हारा गरीब पिता।
     चिट्ठी भेजने के कुछ दिनों बाद किसान को उसके बेटे का टैलीग्राम मिला, जिसमें लिखा था-"पिता जी! भगवान के लिए गलती से भी किसी से खेत मत जुतवा लेना। मैने लूट का सारा माल वहीं छिपा रखा है।' टैलीग्राम पढ़कर किसान उदास हो गया। वह अपने बेटे को निर्दोष समझ रहा था, लेकिन वह तो चोरी के माल की बात लिख रहा था। इधर वह किसान टैलीग्राम पढ़ ही रहा था कि एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और बोला- बाबा-बाबा, जल्दी से खेत पर चलो। पुलिस वाले तुम्हारा खेत खोद रहे हैं। किसान को समझते देर न लगी कि पुलिस शायद चोरी के माल की तलाश में ही आई होगी। वह तेज़ी के साथ अपने खेत पहुँचा। तब तक पुलिस वाले पूरा खेत खोद चुके थे, लेकिन उन्हें लूटा हुआ माल नहीं मिला। किसान को कुछ बताए बिना पुलिस वाले वापस चले गए।
     किसान को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसने अपने बेटे को इस बारे में एक और खत लिखकर भेजा और उससे जानना चाहा कि मामला क्या है? इस बार पुत्र का जवाब पोस्टकार्ड पर आया-आदरणीय पिता जी, परेशान न हों। दरअसल आपकी चिट्ठी पढ़ने के बाद मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं अपनी किस्मत को कोसता हुआ सोचने लगा कि अब इस परिस्थिति में मैं जेल में बैठकर दुःखी होने के अलावा और क्या कर सकता हूँ? लेकिन दूसरी ओर मैं आपकी सहायता भी करना चाहता था। अब कहते हैं न पिताजी कि "जहाँ चाह हैं, वहाँ राह है।' तो मुझे एक उपाय सूझा और मैने आपको टैलीग्राम में चोरी के बारे में लिखकर भेज दिया। मुझे विश्वास था कि पुलिस वाले मेरा टैलीग्राम अवश्य पढ़ेंगे और हुआ भी ऐसा ही। वे टैलीग्राम पढ़कर झाँसे में आ गए और गाँव पहुँचकर सारा खेत खोद दिया। अब आप निश्चिंत होकर खेत में फसल बो सकते हैं। आपका पुत्र। पोस्टकार्ड पढ़ने के बाद किसान की क्या प्रतिक्रिया रही होगी, यह तो आप समझ ही गए होंगे। और यही भी कि "जहाँ चाह वहाँ राह' की उक्ति प्रबंधन ही नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में एकदम सटीक बैठती है। किसी भी कार्य को करने की चाह यदि आप में है तो उपाय आपको अपने आप सूझ जाएगा। कार्य को कर डालने के लिए आवश्यक लगन, दृढ निश्चय, चतुराई और आत्मविश्वास तो "चाह' का पीछा करते हुए आप तक पहुँंच ही जाते हैं।
     इसी के सहारे उस पुत्र ने असंभव लगने वाले कार्य को कम समय, अवरोधों और सीमित साधनों के बावजूद अपने बुद्धि कौशल के उपयोग से पूरा कर लिया। निश्चय ही वह भी एक प्रबंधन गुरु था, जो अपने आसपास के उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग कर परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ना जानता था। दूसरी ओर यदि वह बैठकर अपनी किस्मत को कोसता रहता तो सिर्फ बैठा ही रहता और उसके पिता की स्थिति बद से बदतर हो जाती। इसी प्रकार हम भी जीवन की विपरीत परिस्थितियों का सामना अपने बुद्धि कौशल, लगन, दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास के सहारे कर सकते हैं। हाँ, चाह तो ज़रूरी है। तो फिर सोचना कैसा? यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो इस "चाह' को बनाए रखिए, राह खुद-ब-खुद बन जाएगी।
     और अंत में, हम यह भी बता दें कि इस बार भी पुलिस ने उसके बेटे का पोस्टकार्ड पढ़ लिया था। पुलिस को भी समझ में आ गया था कि उसने एक निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है, लिहाजा उसे छोड़ दिया गया। जब वह गाँव पहुँचा तो उसने अपने पिता के साथ मिलकर पुलिस द्वारा खोदे गए खेत में बुवाई की और अच्छी वर्षा के कारण हुई भरपूर फसल काटी।

No comments:

Post a Comment